1 00:00:02,000 --> 00:00:04,000 ये 'ईएसओ' प्रसारण है. 2 00:00:04,000 --> 00:00:08,000 अग्रणी विज्ञान और 'ईएसओ' के नेपथ्य की झलकियाँ. 3 00:00:08,000 --> 00:00:10,000 'ईएसओ' यानि द यूरोपीयन सदर्न आब्जर्वेटरी 4 00:00:11,000 --> 00:00:18,000 ब्रह्माण्ड को टटोलते हुए हमारे सूत्रधार डा० जो लिस्क बनाम डा० जे के साथ. 5 00:00:20,000 --> 00:00:23,000 हैलो, स्वागत है आपका 'ईएसओ' प्रसारण के इस विशेष अंक में. 6 00:00:24,000 --> 00:00:27,500 ये आपको 'ईएसओ' की अक्टूबर में पचासवीं वर्षगाँठ तक ले जायेगा. 7 00:00:27,500 --> 00:00:30,000 हम आपके लिए आठ विशेष अंक लेकर प्रस्तुत होंगे जिनमें आप ... 8 00:00:30,000 --> 00:00:35,000 'ईएसओ' के दक्षिण के आकाश के अन्वेषण के विगत पचास गौरवशाली वर्षों की गाथा देखेंगे. 9 00:00:40,000 --> 00:00:44,000 बदलता परिदृश्य. 10 00:00:51,000 --> 00:00:52,300 संगीत मधुर है न? 11 00:00:53,440 --> 00:00:55,800 पर सोचिये यदि आपको किसी प्रकार की श्रवण बाधा होती? 12 00:00:55,800 --> 00:00:59,330 यदि आपमें लघु आवृत्ति को सुन पाने की क्षमता न होती. 13 00:01:00,660 --> 00:01:02,460 या फिर आप ऊंची आवृत्तियों को न सुन पाते हों. 14 00:01:04,260 --> 00:01:06,950 ऐसा ही कुछ खगोलशास्त्रियों के साथ भी होता था. 15 00:01:07,650 --> 00:01:12,960 मनुष्य की आँख ब्रह्माण्ड से मिल रहे विकिरण के केवल एक छोटे से हिस्से के लिए संवेदी होती है. 16 00:01:12,960 --> 00:01:16,980 हम बैंगनी प्रकाश से छोटी तरंगों 17 00:01:16,980 --> 00:01:19,040 या लाल प्रकाश से लंबी तरंगों को नहीं देख सकते. 18 00:01:19,770 --> 00:01:22,890 इस तरह हम ब्रह्मांड की महान संगीत रचना का पूरी तरह आनन्द नहीं उठा पाते. 19 00:01:25,000 --> 00:01:30,500 अवरक्त प्रकाश, इन्फ्रारेड रेडिएशन या गर्मी के विकिरण के खोज प्रथम वर्ष 1800 में विलियम हर्शल द्वारा हुयी थी. 20 00:01:34,080 --> 00:01:37,130 एक अँधेरे बंद कमरे में आप मुझे नहीं देख सकते. 21 00:01:38,000 --> 00:01:42,580 पर यदि आप इन्फ्रारेड गॉगल्स पहन लें आप मेरे शरीर के गर्म हिस्से देख पायेंगे. 22 00:01:45,690 --> 00:01:51,790 ठीक इसी प्रकार अवरक्त प्रकाश दूरबीनें उन ब्रह्मांडीय पिंडों को उजागर करती हैं जो इतने ठंडे होते हैं कि उनसे दृश्य प्रकाश का उत्सर्जन नहीं होता, 23 00:01:51,790 --> 00:01:56,380 जैसे वे गैस-धूल के बने काले जिनमें तारों और ग्रहों का सृजन होता है. 24 00:02:05,500 --> 00:02:06,570 कई दशकों से, 25 00:02:06,570 --> 00:02:09,250 'ईएसओ' के खगोलशास्त्री इस ब्रह्माण्ड को इन्फ्रारेड प्रकाश में 26 00:02:09,250 --> 00:02:11,170 खंगालने की चाहत रखते थे. 27 00:02:11,910 --> 00:02:14,850 पर आरंभिक इन्फ्रारेड प्रकाश संसूचक बहुत छोटे थे और प्रभावशाली न थे. 28 00:02:15,490 --> 00:02:18,610 उनसे हमें इन्फ्रारेड आकाश का एक धुंधला स्वरुप दिखाई दिया. 29 00:02:20,890 --> 00:02:24,530 आधुनिक इन्फ्रारेड कैमरे आकार में बड़े तथा शक्तिशाली हैं. 30 00:02:24,530 --> 00:02:29,410 उनकी सुग्राहिता को बधाने के लिए उन्हें बहुत ठंडा किया जाता है. 31 00:02:31,000 --> 00:02:35,820 और 'ईएसओ' की वैरी लार्ज टेलीस्कोप की बनावट इनका भरपूर उपयोग करती है. 32 00:02:40,710 --> 00:02:47,580 सच तो ये है कि हमारे कुछ जादुई तकनीकें, जैसे इंटरफैरोमैट्री, केवल इन्फ्रारेड में ही काम करती हैं. 33 00:02:49,950 --> 00:02:54,190 हमने अपने आयाम का विस्तार किया है - इससे ब्रह्मांड का नया पक्ष उजागर हो रहा है. 34 00:02:57,860 --> 00:03:03,820 यह काला धब्बा ब्रह्मांडीय धूल से बना है. इसने अपने पीछे के तारों को छिपा रखा है. 35 00:03:03,820 --> 00:03:08,530 पर इन्फ्रारेड का उपयोग कर हम इस धूल को भेदकर देख सकते हैं. 36 00:03:10,560 --> 00:03:14,040 ये है ओरायन नेबुला या मृग नीहारिका - तारों की एक पौधशाला. 37 00:03:14,040 --> 00:03:18,470 अधिकांश नवजात तारे धूल के बादलों में छिपे रहते हैं. 38 00:03:18,470 --> 00:03:24,720 एक बार फिर इन्फ्रारेड हमें राहत देती है - त्तारों के जन्म की प्रक्रिया दिखा कर. 39 00:03:35,920 --> 00:03:39,730 मृत्युगामी तारे गैस के बुलबुलों की उच्छ्वास उत्सर्जित करते मिलते हैं. 40 00:03:39,730 --> 00:03:43,450 दृश्य प्रकाश में ये देखते ही बनते हैं. 41 00:03:43,450 --> 00:03:47,630 पर इन्फ्रारेड में ली गयी छवि और अधिक ब्यौरा देती है. 42 00:03:49,980 --> 00:03:52,320 इन्फ्रारेड तकनीक द्वारा लिए गए तारों और गैस के बादलों के दृश्यों को न भूल जायिएगा 43 00:03:52,320 --> 00:03:57,310 जिनका भक्षण आकाशगंगा के केन्द्र का भस्मासुर श्याम विवर या ब्लैक होल कर रहा है. 44 00:03:57,310 --> 00:04:00,990 इन्फ्रारेड कैमरे के बिना हम इन दृश्यों से वंचित रह जाते. 45 00:04:03,170 --> 00:04:04,320 इन्फ्रारेड तकनीक से हमने दूसरी मंदाकिनियों का अध्ययन कर 46 00:04:04,320 --> 00:04:09,460 उनमें अपने सूर्य जैसे तारों का वितरण खोजा है. 47 00:04:12,410 --> 00:04:16,089 सुदूर स्थित मंदाकिनियों का अध्ययन केवल इन्फ्रारेड प्रकाश से ही संभव है. 48 00:04:16,089 --> 00:04:19,000 क्योंकि ब्रह्माण्ड के निरंतर प्रसार के कारण 49 00:04:19,269 --> 00:04:21,500 उनका सामान्य दृश्य प्रकाश इन्फ्रारेड क्षेत्र में खिसक आया है. 50 00:04:23,890 --> 00:04:28,230 पारनाल के समीप के एक पर्वत शिखर पर एक इकलौती इमारत है. 51 00:04:28,910 --> 00:04:32,500 इसके अंदर 4.1 मीटर व्यास की 'विस्टा' दूरबीन लगी है. 52 00:04:32,970 --> 00:04:36,520 इसका निर्माण यूनाइटेड किन्ग्डम में हुआ जो 'ईएसओ' का दसवां सदस्य है. 53 00:04:44,100 --> 00:04:47,230 अभी विस्टा दूरबीन इन्फ्रारेड में ही कार्य करती है. 54 00:04:47,230 --> 00:04:51,990 यहाँ एक विशाल कैमरा लगा हुआ है जिसका वज़न एक ट्रक जितना होगा. 55 00:04:52,460 --> 00:04:58,540 सच में, विस्टा दूरबीन ने इन्फ्रारेड में ब्रह्माण्ड की खोज के नए द्वार खोल दिए हैं. 56 00:04:59,880 --> 00:05:03,700 पचास साल पहले अपने जन्म के समय से 'ईएसओ' में दृश्य प्रकाश में खगोलशास्त्र पर काम चल रहा है. 57 00:05:06,840 --> 00:05:09,850 और इन्फ्रारेड में विगत लगभग तीस वर्ष से. 58 00:05:15,200 --> 00:05:18,040 पर ब्रह्माण्ड का नाद पूरी तरह सुनने के लिए ये काफी नहीं. 59 00:05:20,000 --> 00:05:24,200 चिली की एंडीज़ पर्वतमाला में समुद्र तल से पांच हज़ार मीटर ऊपर है 60 00:05:24,200 --> 00:05:26,400 चायनन्तोर का पठार. 61 00:05:27,920 --> 00:05:30,720 खगोलशास्त्र इससे अधिक ऊंचाई पर कहीं नहीं किया जाता. 62 00:05:34,020 --> 00:05:36,740 चायनन्तोर है घर 'एल्मा' का. 63 00:05:38,030 --> 00:05:41,240 एल्मा' यानि एटाकामा लार्ज मिलीमीटर/सबमिलीमीटर एरे. 64 00:05:42,280 --> 00:05:44,160 'एल्मा' अभी निर्माणाधीन है. 65 00:05:44,650 --> 00:05:48,020 यहाँ की परिस्थितियाँ अत्यंत प्रतिकूल हैं - साँस लेना भी दूभर होता है. 66 00:05:51,210 --> 00:05:54,140 अभी यहाँ 66 में से केवल दस एंटेना ही लग पाये हैं, 67 00:05:54,140 --> 00:05:58,660 पर 'एल्मा' ने 2011 की शरद में अपना पहला प्रेक्षण लिया. 68 00:06:03,080 --> 00:06:09,050 अंतरिक्ष से आती मिलीमीटर तरंगें. इनका प्रेक्षण स्थल ऊंचा और शुष्क होना चाहिए. 69 00:06:09,050 --> 00:06:13,810 चायनन्तोर इस मामले में दुनिया के सर्वोत्कृष्ट स्थानों में से एक है. 70 00:06:18,580 --> 00:06:24,360 इन दो मंदाकिनियों की टकराहट से उत्पन्न ये ठंडी गैस एवं काली धूल दिखाई दे रही है. 71 00:06:24,870 --> 00:06:29,440 ये तारों के जन्म नहीं बल्कि उनके संषेचन की स्थली है. 72 00:06:32,540 --> 00:06:36,170 और इस मृत्युप्राप्त तारे से निकलता सर्पिलाकार प्रवाह - 73 00:06:36,170 --> 00:06:39,210 कहीं ये किसी परिक्रमारत तारे के कारण तो नहीं हो रहा? 74 00:06:43,750 --> 00:06:45,480 ब्रह्माण्ड को देखने की नयी तकनीकें विकसित कर 75 00:06:45,480 --> 00:06:49,710 हम ग्रहों, तारों और मंदाकिनियों के उद्भव के रहस्य के और भी निकट आ गए हैं. 76 00:06:50,310 --> 00:06:53,500 - ब्रह्माण्ड के नाद को पूरी तरह सुनने का प्रयास. 77 00:07:03,500 --> 00:07:07,600 इसी के साथ मैं डा० जे 'ईएसओ' प्रसारण के इस विशेष अंक से आपसे विदा ले रहा हूँ. 78 00:07:07,600 --> 00:07:10,730 फिर मिलेंगे ब्रह्मांड की खोज के एक और दिलचस्प अभियान के साथ. 79 00:07:13,460 --> 00:07:15,000 'ईएसओ' प्रसारण 'ईएसओ' द्वारा प्रस्तुत किया गया, 80 00:07:15,000 --> 00:07:16,500 'ईएसओ' यानि यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला. 81 00:07:16,500 --> 00:07:18,940 'ईएसओ', यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला, 82 00:07:18,940 --> 00:07:21,000 खगोलशास्त्र की अग्रणी अंतर्शासकीय विज्ञान और तकनीकी संस्था है, 83 00:07:21,000 --> 00:07:22,500 जो सन्नद्ध है विश्व की भूतल स्थित सबसे अत्याधुनिक दूरबीनें बनाने में. 84 00:07:25,970 --> 00:07:30,070 प्रतिलेखन 'ईएसओ', अनुवाद - Piyush Pandey पीयूष पाण्डेय, JNMF, इलाहाबाद